दुनिया इक परिवार बताया जाता है।
अक्सर इन्सां तनहा पाया जाता है।
रब्तो-रक़ाबत दुनियादारी रँगरलियां,
लेकिन अपना साथ न साया जाता है।
आँखों देखी पर भी यकीं करना मुश्किल,
ज़हर शिफ़ा के तौर दिखाया जाता है।
हर आवाज़ तवज्जो लायक़ क्यूँ समझूँ,
बे मक़सद भी शोर मचाया जाता है।
माज़ी से दौरे हाज़िर दस्तूर यही,
नाहक़ ही मज़लूम सताया जाता है।
अब तक मैंने इतना ही जाना सीखा,
ख़ुशियाँ बाँटी दर्द छुपाया जाता है।
इश्क़ हमेशा देता आँसू दर्दो-ग़म,
आख़िर क्यूँ ये ख़ाब सजाया जाता है।
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