Monday, August 21, 2017

पुराने शहरों के मंज़र

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं

Sunday, August 20, 2017

सब दोस्त थकने लगे है.

दोस्त अब थकने लगे है

किसीका पेट निकल आया है,
किसीके बाल पकने लगे है...

सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है।

दिनभर जो भागते दौड़ते थे,
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है।

पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे है...1

किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है।

फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है।

कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है....2

देख कर पुरानी तस्वीरें,
आज जी भर आता है।

क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,
किस तरहा ये गुज़र जाता है।

कल का जवान दोस्त मेरा,
आज अधेड़ नज़र आता है...

ख़्वाब सजाते थे जो कभी ,
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है...

Friday, August 18, 2017

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है…
आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है..

अपने घर की कलह से फुरसत मिले तो सुने…
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..

खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..
आज कल परिंदों मे जान कौन रखता है..

हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आज कल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..

बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां_बाप को…
आज कल घर में पुराना सामान कौन रखता है…

सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान…
खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है…

फिजूल बातों पे सभी करते हैं वाह-वाह..
अच्छी बातों के लिये अब जुबान कौन रखता है...!!✍

Tuesday, August 15, 2017

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।।

Sunday, October 23, 2016

Mitti wale diye jalana

राष्ट्रीय हित का गाला घोंटकर छेद न करना थाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

देश के धन को देश में रखना नहीं बहाना नाली में,
मिट्टी वाले दिए जलना अबकी बार दिवाली में !

बने जो अपनी मिट्टी से वो दिए बिके बाज़ारो में,
छुपी है वैज्ञानिकता अपने सभी तीज-त्योहारो में !

"चाइनीज़ झालर" से आकर्षित कीट पतंगे आते है,
जबकि दिए में जलकर बरसाती कीड़े मर जाते है !

कार्तिक दीपदान से बदले पितृदोष खुशहाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

कार्तिक की अमावस वाली रात न अबकी काली हो,
दिए बनाने वालो के भी खुशियो भरी दिवाली हो !

अपने देश का पैसा जाए अपने भाई की झोली में,
गया जो दुश्मन देश में पैसा लगेगा राइफल गोली में !

देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !!

Saturday, August 27, 2016

bachpan wala sunday

*बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता*
90 का दूरदर्शन और हम -
1.संडे को सुबह-सुबह नहा-धोकर टीवी के सामने बैठ जाना..
2."रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना..
3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना..
4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना..
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना..
6.शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना..
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और कोसना...
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद करके खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना..
9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना...
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना...
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,
दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घड़ी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
वो साइकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुत्थियां, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।।
वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
अब हर वार 'सोमवार' है
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी,
मेरी तस्वीरों से तंहाई मे लड़ती होगी ,
जब भी मेरी याद उसे आती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी....
किसी दुजे नाम से फेसबुक पे आई होगी,
ID कोई fake जरूर बनाई होगी,
कोई मुझमें कमी निकालेतो वो चिड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,
.मेरा हर अपडेट उसे अबभी युंही भाता होगा,
मेरा अक्स सामने उसके आही जाता होगा,
जब भी कोई बात उसकी बिगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
लगी मेरी गजलों की लत वो कैसे छुटेगी,
डरते -डरते रिक्वेस्ट मुझे भेजी होगी,
क्युं छोड़ा मुझे कहकर खुद से झगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
काश कहीं फिर से मिलजाए मुझे,
आकर फिर वही प्यार की बात चलाए मुझे,
सोच यही मंदिरों में माथा रगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी.....