Showing posts with label hindi poems. Show all posts
Showing posts with label hindi poems. Show all posts

Friday, March 16, 2018

मेरी सोच...

जहां कदर नहीं वहां जाना नहीं।
जो पचता नहीं, वो खाना नहीं।
जो सत्य पर रूठे उसे, मनाना नहीं
जो नज़रों से गिरे, उसे उठाना नहीं।
मौसम सा जो बदले, दोस्त बनाना नहीं।
ये तकलीफें तो जिंदगी का हिस्सा है
डटे रहना पर कभी घबराना नही।🙏🙏

Saturday, February 17, 2018

ख्वाब

दुनिया इक परिवार बताया जाता है।
अक्सर इन्सां तनहा पाया जाता है।

रब्तो-रक़ाबत दुनियादारी रँगरलियां,
लेकिन अपना साथ न साया जाता है।

आँखों देखी पर भी यकीं करना मुश्किल,
ज़हर शिफ़ा के तौर दिखाया जाता है।

हर आवाज़ तवज्जो लायक़ क्यूँ समझूँ,
बे मक़सद भी शोर मचाया जाता है।

माज़ी से दौरे हाज़िर दस्तूर यही,
नाहक़ ही मज़लूम सताया जाता है।

अब तक मैंने इतना ही जाना सीखा,
ख़ुशियाँ बाँटी दर्द छुपाया जाता है।

इश्क़ हमेशा देता आँसू दर्दो-ग़म,
आख़िर क्यूँ ये ख़ाब सजाया जाता है।

सोचा ना था...

बोतल मे रखी शराब सुख जाएगी, सोच ना था.
पर बोतल से बदबू नही जाएगी ,सोचा ना था।
पैरो मे पड़े छाले सूख जाएगा , सोच ना था।
पर निशान नही जाएगा, सोचा ना था।
पहले प्यार के निशान मिट जाएगा सोचा ना था।
पर उसमे जो हाथ जले थे उसके निशान नही जाएँगे, सोचा ना था।
महफ़िल मे रहने वाले भी तनहा हो जाएगा, सोचा ना था।
ओर उन तन्हाइयो की आदत मे पड जाएँगे , सोचा ना था।
अब सोचता हू क्या खोया ओर क्या पाया...तो लगता है,
खोने को कुछ था ही नही ओर पाने के लिये है
सारा आसमान!!!

Monday, September 4, 2017

थोडा थक गया हूँ

थोडा थक गया हूँ,
दूर निकलना छोड दिया है।
पर ऐसा नही है,की मैंने
चलना छोड दिया है।।

     फासले अक्सर रिश्तों में,
     दूरी बढ़ा देते हैं।
     पर ऐसा नही है कि मैने अपनों
     से मिलना छोड दिया है।।

हाँ...ज़रा अकेला हूँ दुनिया
की भीड में।
पर ऐसा नही की मैने
अपनापन छोड दिया है।।

    याद करता हूँ अपनों की
    परवाह भी है मन में।
    बस कितना करता हूँ ये
    बताना छोड दिया।।
         

Saturday, September 2, 2017

बचपन

बचपन लौट के नही आता।
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥

बचपन के अजब रंग थे ।
दोस्त और मस्ती के संग थे॥

आम के पेड़ अमरूद की डाली ।
बेरों के कांटे मकड़ी की जाली॥

पापा की डांट मम्मी का प्यार।
छोटा सा बछड़ा था अपना यार॥

बारिश का पानी डूबे कीचड़ में पाँव।
बारिश के पानी में कागज की नाव।।

गुल्ली व डंडो का प्यारा सा खेल।
चोर सिपाही में होती थी जेल॥

बचपन लौट के नही आता।
जब भी ढूँढा यादों में पाता॥

Monday, August 21, 2017

पुराने शहरों के मंज़र

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं

Sunday, August 20, 2017

सब दोस्त थकने लगे है.

दोस्त अब थकने लगे है

किसीका पेट निकल आया है,
किसीके बाल पकने लगे है...

सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है।

दिनभर जो भागते दौड़ते थे,
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है।

पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे है...1

किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है।

फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है।

कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है....2

देख कर पुरानी तस्वीरें,
आज जी भर आता है।

क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,
किस तरहा ये गुज़र जाता है।

कल का जवान दोस्त मेरा,
आज अधेड़ नज़र आता है...

ख़्वाब सजाते थे जो कभी ,
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है।

पर ये हकीकत है
सब दोस्त थकने लगे है...

Friday, August 18, 2017

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है…
आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है..

अपने घर की कलह से फुरसत मिले तो सुने…
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..

खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को..
आज कल परिंदों मे जान कौन रखता है..

हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आज कल हसरतों पर लगाम कौन रखता है..

बहलाकर छोड़ आते है वृद्धाश्रम में मां_बाप को…
आज कल घर में पुराना सामान कौन रखता है…

सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान…
खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है…

फिजूल बातों पे सभी करते हैं वाह-वाह..
अच्छी बातों के लिये अब जुबान कौन रखता है...!!✍

Sunday, October 23, 2016

Mitti wale diye jalana

राष्ट्रीय हित का गाला घोंटकर छेद न करना थाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

देश के धन को देश में रखना नहीं बहाना नाली में,
मिट्टी वाले दिए जलना अबकी बार दिवाली में !

बने जो अपनी मिट्टी से वो दिए बिके बाज़ारो में,
छुपी है वैज्ञानिकता अपने सभी तीज-त्योहारो में !

"चाइनीज़ झालर" से आकर्षित कीट पतंगे आते है,
जबकि दिए में जलकर बरसाती कीड़े मर जाते है !

कार्तिक दीपदान से बदले पितृदोष खुशहाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !

कार्तिक की अमावस वाली रात न अबकी काली हो,
दिए बनाने वालो के भी खुशियो भरी दिवाली हो !

अपने देश का पैसा जाए अपने भाई की झोली में,
गया जो दुश्मन देश में पैसा लगेगा राइफल गोली में !

देश की सीमा रहे सुरक्षित चूक न हो रखवाली में,
मिट्टी वाले दिए जलाना अबकी बार दिवाली में !!

Saturday, August 27, 2016

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी

छुप छुप के कही पोस्ट मेरी पढती होगी,
मेरी तस्वीरों से तंहाई मे लड़ती होगी ,
जब भी मेरी याद उसे आती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी....
किसी दुजे नाम से फेसबुक पे आई होगी,
ID कोई fake जरूर बनाई होगी,
कोई मुझमें कमी निकालेतो वो चिड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,
.मेरा हर अपडेट उसे अबभी युंही भाता होगा,
मेरा अक्स सामने उसके आही जाता होगा,
जब भी कोई बात उसकी बिगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
लगी मेरी गजलों की लत वो कैसे छुटेगी,
डरते -डरते रिक्वेस्ट मुझे भेजी होगी,
क्युं छोड़ा मुझे कहकर खुद से झगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी,.
काश कहीं फिर से मिलजाए मुझे,
आकर फिर वही प्यार की बात चलाए मुझे,
सोच यही मंदिरों में माथा रगड़ती होगी,
लगता है अब भी वो रो पड़ती होगी.....

Wednesday, June 1, 2016

Ek shakhs tha

हकीकत में नहीं अक्सर ख्वाबों में ही आता था,
एक शख्स था, सवाल सा, जवाबों में ही आता था।
उसका रिश्ते निभाने का एक अजब ही लहजा था,
रिश्ता वो भी एक लाजवाबों में ही आता था।
बहुत नुकसान हुआ था उसके जाने पर कुछ दूर मुझे,
फायदा बस एक था, वो यादों में ही आता था।
'आकाश' से नज़रे रोज़ मिलाकर पूछता है मौसम को,
अंदाज ही कुछ ऐसा था, बरसातों में ही आता था!

Wednesday, May 18, 2016

Meri Maa

आँखों में आँसू, होंठों पर दुआ,
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ--
देखती है स्कूल जाते नन्हें बच्चों में मुझे अब भी,
जानती हूँ कि बहुत दूर हूँ उससे, मैं
फिर भी, घर वापस आते बच्चों में
ढूँढ़ती हैं उसकी आँखें मुझे
अभी भी, हर रोज़
सँवारती है मेरी एक-एक चीज़
करती हुई पिता जी से मेरे बचपन की बातें
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।
सो जाने पर प्यार से सहलाती मेरे सिर को,
छुपाती है अपने हर ग़म
मुझे देख मुस्कराती
दरवाज़े पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।
पत्थर के देवताओं से
कई-कई दिन भूखी-प्यासी रहकर भी
माँगती है मेरी लम्बी उम्र के लिए दुआ
आसमान से भी ज़्यादा अपनी बाहें फैलाए
करती है मुझे प्यार,
सागर से भी प्यारी आँसू छलकाती
दरवाज़ें पर इन्तज़ार करती मेरी माँ।

Shadi ka mausam

अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफिस भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..

सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…

ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…

क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे !

Monday, May 5, 2014

Unchai By Atal Bihari Vajpai

ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।


जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।

ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,


किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।


जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूँठ सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।


भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,


किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।


मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

Maut Se Than Gayi

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

kadam milakar chalna hoga

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

Thursday, December 22, 2011

hamko mita sake ye zamane mein dam nahin



hamko mita sake ye zamane mein dam nahin
hamsein zamana khud hain zamane se ham nahin

befaayada aalam nahi bekaar gam nahin
taufeek de khuda to ye nemat bhi kam nahin

meri zuban pe shikva-e-ahal-e-sitam nahin
muzko jaga diya ye ahsaan kam nahin

yaa rab! hujuum-e-gam ko de kucch aur vuusatein
daaman to kya abhi meri aankhe bhi nam nahin

zaahid kucch aur ho na ho maikhane mein magar
kya kam ye hain ke shikva-e-dair-o-haram nahin

marg-e-jigar pe kyon teri aankhein hain ashk rez
ik saanihaa sahi magar itnaa aham nahiin

Wednesday, December 21, 2011

Tum To nahi ho




सुन ली जो ख़ुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो

दरवाज़े पे दस्तक की सदा तुम तो नहीं हो


सिमटी हुई शर्माई हुई रात की रानी

सोई हुई कलियों की हया तुम तो नहीं हो


महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें

भीगे हुये मौसम की अदा तुम तो नहीं हो


इन अजनबी राहों में नहीं कोई भी मेरा

किस ने मुझे यूँ अपना कहा तुम तो नहीं हो

Saturday, December 17, 2011

koi haseen khaab dhondhte hai


Dard bhari zindagi ka suraag dhondte hai



Hai andhera bhut yaha eak chiraag dhondte hai



Banaye thy tamasha zindagi ko es tarh



Ke un mherbaano ka elaaj dhondhte hai



Koi en andhero main meri dil ki shmma jala de



Hum apni badnasibi ka raaz dhnodhte hai



Hasrat ka aayina ye pather dil se toot gaya



Sisho ke en tokdo main apna aaj dhondhte hai



Maazi ke tulkh lamho ne hame jhulas ke rakh diya


Dil ko bhulane ke liye koi haseen khaab dhondhte hai

Monday, December 12, 2011

Yaar, Hum Bade Ho Jaate hai


Aankhon mein Khwaab!!
Chehre Par Muskaan!!
Dil mein Khwaishe..
Bade Hone Ke Armaan

Chalte Chalte Yeh Daur
Kaha Kho Jaate hai
Pata Nahi Kyon,
Yaar,Hum Bade Ho Jaate Hai..!!

Ek Halki Si Muskaan Chehre Par
Aaj Bhi Sajaye Baithe Hai!!
Kal Ki Fikar mein Hum,
Apna Aaj Gawaye baithe Hai

Waqt Aur Halaat Ke Mutabik
Hum  To Sawar Jaate Hai
Par Pata Nahi Kyon,
yaar, Bade Ho jaate Hai

Zimmedariyan Bhi
Badhti Reh Gayi
Umar Ke Mutabik Sehat
Ghathti Reh gayi

Masoom Se Khwaab
Palkon mein So Jate Hai
Pata Nahi Kyon
Yaar, Bade Ho Jaate Hai

Khel Bhaag Daud Ke
Ab Zaroorate Khilaati hai
Paise,Status Ke peeche
Har Ek Ko Bhagaati Hai

Aage Bhadne Ki Daud mein Hum Rishto
Ko Peeche Chodd jaate Hai
Pata Nahi Kyon,
Yaar, Hum Bade Ho Jaate Hai

Ruthna-Manana Guzra
Hua Daur Sa Lagta Hai!!
Aaj ka Aadmi Shikayaton
Ko Mann mein Bharta Hai

Hum Apno Se Pal Bhar Mein
Door Ho Jaate hai
Pata Nahi Kyon,
Yaar, Hum Bade Ho Jaate hai

"Khwaish" Apne Dil Ke Dhadkano Ki Suun
yeh Bhi Kuch keh jaate hai!!
Awaaz nahi inme par Yeh Har
Zakhm Duniya ke Seh Jaate Hai

Khilone Toote To Juud Jaaye!!!!!
Dil Toote To Hum Ro Jaate Hai
Pata Nahi Kyon,
Yaar, Hum Bade Ho Jaate Hai