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Thursday, May 17, 2018

ज़िंदगी

ज़िन्दगी से लम्हे चुरा, बटुए मे रखता रहा!
फुरसत से खरचूंगा, बस यही सोचता रहा।

उधड़ती रही जेब, करता रहा तुरपाई
फिसलती रही खुशियाँ, करता रहा भरपाई।

इक दिन फुरसत पायी, सोचा .......खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े, वो लम्हे खर्च आऊं।

खोला बटुआ..लम्हे न थे, जाने कहाँ रीत गए!
मैंने तो खर्चे नही, जाने कैसे बीत गए !!

फुरसत मिली थी सोचा, खुद से ही मिल आऊं।
आईने में देखा जो, पहचान  ही न पाऊँ।

ध्यान से देखा बालों पे, चांदी सा चढ़ा था।
था तो मुझ जैसा, जाने कौन खड़ा था।

Sunday, April 1, 2018

अकेले है वो...

अकेले हैं वो और झुँझला रहे हैं
मिरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं

ये कैसी हवा-ए-तरक़्क़ी चली है
दिए तो दिए दिल बुझे जा रहे हैं

Friday, March 16, 2018

मेरी सोच...

जहां कदर नहीं वहां जाना नहीं।
जो पचता नहीं, वो खाना नहीं।
जो सत्य पर रूठे उसे, मनाना नहीं
जो नज़रों से गिरे, उसे उठाना नहीं।
मौसम सा जो बदले, दोस्त बनाना नहीं।
ये तकलीफें तो जिंदगी का हिस्सा है
डटे रहना पर कभी घबराना नही।🙏🙏