Friday, April 23, 2010

Nar ho na nirash karo man ko

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को

5 comments:

Anonymous said...

Hii .. !
Uhm.. just wanted you to know that.. this is not the complete poem & nor have you written the meaning. So, it doesn't really make sense & so, please delete your this webpage & yes, your webpage was of no help! But, still thank you :)

Anonymous said...

Please, do reply to the comment posted before this :) We'd be obliged :D

Anonymous said...

Hey !
I am a Grade 9 student. And, this poem is supposed to be in my curriculum.
And, this was really helpful.
Thanks a ton :) !
I got really good grades because of your help.
Thank you again :) !

aishwarya rai bachan said...

kitne jalde log aapne man badalte hai hahahahaha GIRGET :P loser

boduve peter resu said...
This comment has been removed by the author.