Tuesday, February 2, 2010

धूप ही क्यों ??

धूप ही क्यों छांव भी दो

पंथ ही क्यों पांव भी दो

सफर लम्बी हो गई अब,

ठहरने को गांव भी दो ।

प्यास ही क्यों नीर भी दो

धार ही क्यों तीर भी दो

जी रही पुरुषार्थ कब से,

अब मुझे तकदीर भी दो ।

पीर ही क्यों प्रीत भी दो

हार ही क्यों जीत भी दो

शुन्य में खोए बहुत अब,

चेतना को गीत भी दो ।

ग्रन्थ ही क्यों ज्ञान भी दो

ज्ञान ही क्यों ध्यान भी दो

तुम हमारी अस्मिता को,

अब निजी पहचान भी दो ।

3 comments:

Anonymous said...

शब्द और भाव - बहुत खूब - हार्दिक शुभकामनाएं

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Dimple Maheshwari said...

आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं..........हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|